देवनागरी लिपि का नामकरण ,विकास एवं विशेषताएं

 देवनागरी लिपि का नामकरण ,विकास एवं विशेषताएं -

देवनागरी लिपि का नामकरण ,विकास एवं विशेषताएं -


उच्चारित ध्वनि संकेतों की सहायता से भाव की अभिव्यक्ति भाषा कहलाती है।


लिखित वर्ण संकेतों की सहायता से भाव की अभिव्यक्ति लिपि कहलाती है।


भाषा श्रव्य होती है ,लिपि दृश्य होती हैं।



ब्राह्मी लिपि से ही भारत की सभी लिपियां प्रकाशित हुई।


नागरी लिपि का प्रयोग 8वीं-9वीं सदी ईसवी से आरंभ हुआ।


देवनागरी लिपि का नामकरण -


देवनागरी लिपि को लोक नागरी एवं हिंदी लिपि भी कहा जाता है।


नागर ब्राह्मणों के नाम से इसे नागरी कहा गया है।


देवनागरी लिपि के विशेषताएं /गुण -


भारत के अनेक लिपियों के निकट।


जो ध्वनि का नाम वही वर्ण का नाम।


एक ध्वनि के लिए एक ही वर्णन संकेत।


जो बोला जाता है वही लिखा जाता है।


एक वर्ण में दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं।


देवनागरी लिपि में किए गए सुधार-


उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित आचार्य नरेंद्र देव समिति का गठन 1947।


काशी नगरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ की बारहखड़ी।


बाल गंगाधर का तिलक फांट 1904-26 ।


सावरकर बंधुओं का अ की बारहखड़ी आदि......।


 10वीं से 12वीं सदी के बीच इसी प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत की अधिकांश आधुनिक विधियों का विकास हुआ।


फोर्ट विलियम कॉलेज के हिंदुस्तानी विभाग के सर्वप्रथम अध्यक्ष जान गिलक्राइस्ट थे।


  हिंदुस्तानी की तीन शैलियां थी।


दरबारी शैली, हिंदुस्तानी शैली, हिंदवी शैली


 हिंदुस्तानी विभाग के  अध्यक्ष के रूप में विलियम प्राइस को 1823 ईसवी में नियुक्त किया गया।


इन्होंने हिंदुस्तानी के नाम पर नागरी लिपि में लिखित हिंदी पर बल दिया।


भारतेंदु हरिश्चंद्र- भारतेंदु हरिश्चंद्र ने नागरिक आंदोलन को अभूतपूर्व शक्ति प्रदान की।


 1882 मैं शिक्षा आयोग के प्रश्न पत्र का जवाब देते हुए कहा -

सभी  देशों की अदालतों में उनके नागरिकों की बोली और लिपि का प्रयोग होता है-

 यही ऐसा देश है जहां न तो अदालती भाषा शासकों की मातृभाषा है और नाही  प्रजा की।


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